Sunday, 11 May 2025

पहली बूँद (Pehli Boond) by गोपालकृष्ण कौल (Gopal Krishna Kaul)

वह पावस का प्रथम दिवस जब,

पहली बूँद धरा पर आई।

अंकुर फूट पड़ा धरती से,

नव-जीवन की ले अंगड़ाई।


धरती के सूखे अधरों पर,

गिरी बूँद अमृत सी आकर।

वसुंधरा की रोमावलि-सी,

हरी दूब पुलकी-मुसकाई।

पहली बूँद धरा पर आई।।


आसमान में उड़ता सागर,

लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर।

बजा नगाड़े जगा रहे हैं,

बादल धरती की तरुणाई।

पहली बूँद धरा पर आई।।


नीले नयनों-सा यह अंबर,

काली पुतली-से ये जलधर।

करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,

धरती की चिर-प्यास बुझाई।

बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला

बनने को फिर से ललचाई।

पहली बूँद धरा पर आई।।


- गोपालकृष्ण कौल

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